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Randheer Rahbar

Tragedy

5.0  

Randheer Rahbar

Tragedy

ये आग आख़िर कब तक !

ये आग आख़िर कब तक !

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ये आग जल रही है

और मेरा शहर भी

आग की फितरत जो ज़लना है

ये तो उन लोगों से पूछो

आग ज़िनके सीने में लगी है,


वो चिल्लाते हैँ

के ये गुलिस्तां हमारा है

नोचते रहे रात भर जिसे

वो बोलते हैँ के

ये हिस्सा हमारा है,


वो सड़कें सुर्ख हैं

लहू के रंग में

मैनें पूछा ए- रहबर

क्या धर्म तुम्हारा है,


रोंदी गई उन हाफते कदमों से

वो मिट्टी सिसकती है

भूल गई सब देख ये दहशत

ज़िसका ना कोई दर ,ना किनारा है,


वो मासूमियत बेघर हो गई

वो चीखें पत्थरों से टकरा लौट आई

बेबस अब ये दरों -दिवार साहिब

विश्वास - भरोसे की किताबें आग में जल गई,


बहुत इल्म है सुना तुम्हारे पास

इतने सालों से तुमसे दिल की

किताब ना पढ़ी गई

चलो अब तो समझो बातें दिल की,


लुटी हुई माँ , और जानें कितने ही रिश्ते

ज़लने ना दो अब ओर

वो गंगा - ज़मुना तहजीब करो ज़िन्दा अब

ना जलाओ मन का रब,


शमशान की राख कुछ कहती है

वो दफन करो नफरत की आग

वतन की मिट्टी को माथे से लगाओ

विश्व फिर गाये भारत का राग।


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