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Randheer Rahbar

Tragedy

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Randheer Rahbar

Tragedy

निर्भया का इन्साफ

निर्भया का इन्साफ

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थी वो निर्भया

हाँ थी वो नारी,

आँखों में स्वपन लिए

उसको भी थी दुनिया प्यारी।


उड़ना चाहती थी

वो आसमां

थे वो दरिंदे

हाँ वो दरिंदे

नोच डाले जिसने

वो “पर" और परिंदे।


केंडल मार्च हुए कितने ही

कितने ही जूलूस हुए

भीड़ चली फिर भेड़ चाल

बस दिन यूँ ही फिसलते गए।


अस्मत भी लुटी

जान भी गई

और दुनिया सारी

मान भी गई।


माँगा जब इंसाफ

ख़ुदा से

मगर इंसान धरती पर

कुछ ऐसे जुदा थे।


यूँ ही खेल चला

और चलता गया

इन्साफ का तराजू

इधर–उधर डोलता गया।


काले कोट में

कुछ हैवानो ने

चक्रव्यूह रचे कुछ ऐसे।

कानूनी कुछ शैतानो ने



थी आंसुओं की विकट पहेली

दर्द , चीखें थी इक बेटी ने झेली

बेटी की अस्मत और इंसाफ को

वो माँ मगर लड़ी अकेली।


इन्साफ मिला उस मर्दानी को

फंदे पर लटके जब शैतान वो

बीते फिर भी 7 साल

देखो ये हैवानों का कमाल।


हाँ आज जीत तो हुई है इंसाफ की

मगर देर क्यूँ ?

बात बेवज़ह, उलझी मिसाल की

धीमी चाल कानूनी जाल की।


नहीं सुधरे मन के काले जब

फौलादी तू हो जा अब

ये नारी अब अपने “बाजू गढ़” ले

देखो निर्भया अब खुद ही लड़ ले

हाँ, निर्भया अब खुद ही लड़ ले !


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