STORYMIRROR

Randheer Rahbar

Others

3  

Randheer Rahbar

Others

"राम और रहबर एक राह के"

"राम और रहबर एक राह के"

1 min
251

जाने क्या ढूंढता है इंसां                                         

यूँ परेशां सा  

वज़ह ना पता है

ना खुद की ख़बर है।


वो मज़हब की बातें

वो सियासत में उलझे  

वो बनाता है घरोंदे

वो खुद ही ढहाता

तूफ़ान लिए दिल में

क्यूँ ख़ुद से है ख़फ़ा सा।


याद करो वो दौर

वो लम्हें सुहाने 

वो राम

वो रहबर

खेलें हैं इक ही आंगन में

वो मिट्टी सुकूं की वो यादें ज़हन में।


वो मस्ती का आलम

मासूम चेहरे

वो बारिश में बहती

कश्ती के मायने

लोग थे ऐसे दीवाने

वो बेफिक्र ज़माने। 


वक़्त ऐसा बीता

वो सब्र में दरारें

मज़हब की दीवारें

भरोसा है रीता

कल तक थे जो अपने

हुए अब पराये।


वो घर जो तेरे - मेरे

इसी मिट्टी से बने हैं

वो पानी वही है

हवा भी बहती वही है

वो कपड़ों के धागे

हैं अक्स एक ही

 बेबस अभागे।

 

वो गुलाब गुलाबी

है तेरे चमन का

हाँ मेरे चमन का

क्यूँ हैं वो सरहद

दिल पे लकीरें

फिर क्यूँ रंग तेरे जुदा हैं

हैं मेरे अलहदा।


वज़ह बे वज़ह सी

वज़ह अजनबी सी

सोचें ज़रा बस

ज़रा सी ये बातें

दिन भी तेरा वही है  

वो रातें मेरी वही हैं।


अब तो समझो

ये बात ना इतनी जटिल है

ये घर है मेरा उतना ही तेरा

चलो आओ मिलकर

मिटायें नफ़रत का अँधेरा

अमन - चैन कायम हो फिर से।


उन बातों को छोड़ो

सियासत वो छोड़ो

जो ज़ख़्म कुरेदे

लहू सुर्ख़ तेरा

लहू सुर्ख़ मेरा

हो ऐसी क़ुर्बत 

मिले ख़ालिस वो राहत 

दिल को फिर दिल  से।          


Rate this content
Log in