सुबह का सूरज
सुबह का सूरज
समय के झंझावात ने बरस बरस में क्या बदला है
रोज रोज सुबह का सूरज, हर रोज ही ढला है!!
सर्दी, गर्मी, बरखा मौसम का मिजाज बदला है
कैसी भी आ जाये मुश्किल दिल अकेला चला है
जन्म, मरण, परण का ये यायावर सिलसिला है
दीवारों पे टंगती तस्वीरें फिर भला कौन मिला है
रोज रोज सुबह का सूरज, हर रोज ही ढला है!!
रवि, शशि ये तारे इनको भी किस्मत ने छला है
ग्रहण में आ जाते कभी भी ऐसी घेरती कला है
आंधी, तूफान, बिजली से कायनात तक हिला है
कहर बरपाया चले गये, खाली हाथों को मला है
रोज रोज सुबह का सूरज, हर रोज ही ढला है!!
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कदम, कसम, कलम यहां जब जब भी चला है
सोच समझ में जरा से भी बहके, तो खला है
समय, मौत, उमर हमें यूं अलविदा कर चला है
किसका किससे क्यूँ इंतजार, कब कौन टला है
रोज रोज सुबह का सूरज हर रोज ही ढला है!!
कर्ज, मर्ज, फर्ज का फंदा भी ऐसा घालमघेला है
इसे छोटा ना समझो यारों ये बड़ा अलबेला है
हुस्न, रंग, जवानी के करतब में ऐसा जलवा है
डूबे भी और पार ना पाये अनसुलझा झमेला है
रोज रोज सुबह का सूरज हर रोज ही ढला है!!
समय के झंझावात ने बरस बरस में क्या बदला है
रोज रोज सुबह का सूरज, हर रोज ही ढला है!!