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Dr. Nisha Mathur

Classics

5.0  

Dr. Nisha Mathur

Classics

चलो मित्र

चलो मित्र

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चलो दोस्त हम दोनों ढूढें, सपनों की अपनी दुनिया,

जहां सिर्फ प्यार, मस्ती की, हम नित उड़ाये चिंदियां।


जहां ढूढें हम नदी सा निश्चल बहता हुआ दिन,

मोरपखों से कहानी और छंद लिखता हुआ दिन,

जहां रेत पर बिखरे सीप शंख स्वछन्द लेटे हुये हो,

वहीं कही कच्ची भीत सा ढहता हुआ दिन हो

चलो दोस्त हम दोनों ढूढें, सपनो की अपनी दुनिया।


जहां सूरज रोजाना नंगे पांव चलकर आता हो

घाटियों की हवाओं का कपड़े बदलकर बहना हो।

जहां कागज की कश्ती और बारिश का पानी हो

वहीं एक दूजे के साथ अपनी मीठी सी उड़ान हो।

चलो दोस्त हम दोनों ढूढें, सपनो

ं की अपनी दुनिया


जहां ना कोई बोझ हो, ना दुनियादारी की फिक्र

ना कोई हो दिखावा, फिर उलाहने भी हो क्यूंकर।

जहां ना मंजिलों की चिंता, ना कुछ कर कमाने की

वहीं जुगत बारिश में अपना आशियाना बसाने की

चलो दोस्त हम दोनों ढूढें, सपनो की अपनी दुनिया।


जहां तुम मेरे साथी, मेरे बचपन, मेरी पहचान बनो

तुमही मेरा साया, मेरी हकीकत, मेरी जान बनो।

जहां कदम कदम के फासले पर मेरी मुस्कान बनो

वहीं उस दुनियां में मेरा दीन मजहब, ईमान बनो।

चलो दोस्त हम दोनों ढूढें, सपनों की अपनी दुनिया

जहां सिर्फ प्यार, मस्ती की हम नित उड़ाये चिंदियां।


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