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Dr. Nisha Mathur

Abstract

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Dr. Nisha Mathur

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समय शून्य सा !

समय शून्य सा !

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समय शून्य सा कभी करवट बदलता सा,

टूटती सी सांसें और बिखरे फूल सा !

दिल की गर्द झाड़ने को जरा जो ठहरी,

तो ये रुक गया, कायनात सा थम गया।

और देता हुआ सा दस्तक दहलीज पर,

कठहरे में मुझ स्वयं को खड़ा कर गया।


समय शून्य सा कभी करवट बदलता सा,

झूमती इठलाती लहरों की मौज सा।

बादल निचोड़ कर कुछ छींटे देता रहा,

तो तपते से जीवन को राहत भी दे गया।

और घड़ी घड़ी मेरे कदमों के सहारे पर,

मेरी बाहों में अतीत के अवशेष छोड़ गया।


समय शून्य सा कभी करवट बदलता सा,

ठूंठ की तरह जड़ होता और नगण्य सा !

अधरों पे गुलमोहरों सी गुलाबी रंगत ले रहा,

तो भावविभोर हो प्यार में खिलखिला गया।

और सुख के सूरज सा छांव धूप के खेल पर,

कलैण्डर के पन्नों सा बदल, शून्य कर गया।


समय शून्य सा कभी करवट बदलता सा,

चुप बिना पदचाप के वक्त की चाल सा !

एक हाथ से लेकर के दोनों हाथों से लेता रहा,

अपने पदचिन्ह छोड़ता अनवरत भागता गया।

और सांस के साथ देह, देह के साथ आस पर,

कालचक्र सा कभी जीता और पल पल मार गया।


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