Rashmi Singhal

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दादी के दाँत

दादी के दाँत

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हो गई बहुत ही बूढ़ी दादी

दाँत सभी कमजोर पड़ गए

बचे-खुचे थे जबड़े में जो भी 

धीरे-धीरे वे भी झड़ गए,


खाने लगी दादी खाने को,

मुँह से अपने पपोल-पपोल कर

रोटी को सब्जी के रेशे में, खाती

बेचारी झकोल-झकोल कर,


दफ्तर से छुट्टी लेकर इक दिन

ठीक करवा लाए पापा जबड़ा

खत्म हो गया फिर तो बस 

दादी के दाँतों का, सारा रगड़ा,


अब ना बिल्कुल मेरी दादी

नजर पोपली आती है

नकली दाँत लगा कर दादी

देखो कितना मुस्काती है


अब तो दादी अपने दाँतों से

चने तक भी है चबाती 

ठंडा, मीठा, खट्टा हो कुछ भी 

सब ही, बडे मजे से खाती,


पहले से भी ज्यादा दादी 

सुंदर नजर है आती

बड़े चाव से सबके संग अब,

फोटो वह खिंचवाती 


कुछ समय के बाद ही पर

वो सेहत से हो गई आधी

आ गया वो दिन अचानक

मर गई जब मेरी दादी


आखिर! दादी की तस्वीर हमने

घर है में वही लगाई

मरने से पहले जो दादी ने

नकली दाँतों में थी, खिंचवाई।


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