गीतिका
गीतिका
यूँ ही बीत जा रहीं सदियाँ,एक एककर वर्ष सभी,
पल हैं धरे सहेजे अनगिन, जीवन के संघर्ष सभी !
आना अपने संग लिए तुम उस अतीत की गठरी को,
सारे दर्द हमारे अपने और तुम्हारे हर्ष सभी !
तजकर के निश्चिन्त हो गए अपने राग-द्वेष सारे,
समिधाओं सँग जले हवन में दर्द,दम्भ,अपकर्ष सभी !
रंच न पश्चाताप कहीं है शेष नहीं कुछ कहने को,
जो करने थे समय चक्र सँग पूरे हुए विमर्श सभी !
चलने का है नाम जिंदगी छलनामयी मंजिलें हैं,
देख लिए उत्तुंग शिखर सँग पतन और उत्कर्ष सभी !
