दोहा
दोहा
माँ शैलपुत्री बिनय करूँ, पाऊँ सुख का सार
मोह जाल में हों के ही, हैं जीवन आधार। १
ब्रहाचारणी सद भेष, बैल सवारी साथ
ले खुद ही सवार ले, यहीं परमार्थ हाथ। २
चन्द्रघंटा की ताल से, जग मोहित सा पाय
क्रोध रूप पाये अरि को, खड़ी समक्ष धमकाय। ३
कड़े विवेक न ज्ञान सुझ, भरे गुण से लाचार
कुष्मांडा कृपा भर सुख, गुण से सब साकार। ४
पूजन अर्चन करें खड़े, 'माँ' स्कंध के द्वार
भूल-चूक सब माफ कर, माँ बरसाओ प्यार। ५
माँ कात्यानी स्वामिनी, तुम से बड़ा न कोय
भर करुणा श्रद्धा से माँ, जो सुन मंगल होय। ६
अरुण नैन विकराल मुख, हाथ पकड़ कमंडलु
विश्व्वेश्वरी पूंज देव, देख चण्डी रूप डोलु। ७
माँ तुम करुणामयी हो, ममता की हो खान
जो ध्यान दुर्गा से हटे, भटक पाये अज्ञान। ८