गीतिका- आधार छंद- वास्रग्विणी
गीतिका- आधार छंद- वास्रग्विणी
खोल आँखें खड़ी मात मनुहार से।
देख एक बार माँ आज स्वीकार से।।
द्वार आई दुखी, बन बिकल हाल सा
हाथ फैला हुआ, हाल लाचार से।।
हाथ जोड़े पड़ी, मौन हो कर अलग।
दो मुझे प्यार माँ, गौर अधिकार से।।
शीश मन्दिर झुका, जान सब हाल को
कष्ट सब ही हटा, मोड़ उपकार से ।
धूप दीपक लिए, आरती हाथ में
भोग हलवा सज़ा, प्यार सत्कार से।
जानती कुछ नहीं, तप विधि ज्ञान भी
तुच्छ भी हो सफल, नेह पुचकार से।