कविता..अधिकार ही सिखाते.
कविता..अधिकार ही सिखाते.
तन, मन और भाग्य पर अहंकार नहीं करना चाहिए
कुछ दिन के मेहमान होते सब अधिकार ही सिखाते।
ये बुद्धि हृदय का तालमेल सा तालमेल हावी हो जाता
सद बुद्धि को लुप्त कर नकारात्मक सरोकार ही सिखाते।
मिथ्या, धोखा, और पाशविक परिवृर्तीयाँ बढ़ता सा हैं
हर प्राणी उसको तुच्छ सा कटू व्यवहार ही सिखाते।
तूफान अधिक हो अगर कश्तियाँ अक्सर डूब जाती है
अहंकार अधिकता में हस्तियाँ खो निराधार ही सिखाते।
हमेशा अहं ने मुँह की ही अतीत से ही रीत सी बनाई
द्रयोधन, कंस, रावण, महिषासुर जाना ये लाचार ही सिखाते।
सहनशीलता और सियानप से ही चलता सब कारोबार हैं
“रेखा” वरना मझधार पड़ा एकल समझदार ही सिखाते।