गाथागीत : विरांगना लक्ष्मीबाई
गाथागीत : विरांगना लक्ष्मीबाई
जय जय गणेश विपदा हरो,
जीवन के क्लेश,कष्ट कम करो,
हे अष्टविनायक सिद्धि के दाता,
पूर्ण करो मनकामना हमारी है सुखदाता।।
जय जय भवानी, जय जय भवानी
वीरों की तुम हो महारानी,
दुष्टों का संहार हो करती,
हर विपदा को तुम हो हरती,
जय जय भवानी, जय जय भवानी
सुनो कहानी है भवानी।।
थी, वीरांगना वह स्वाभिमानी, लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
कन्या एक जन्मी थी, ओजस।
नाम रखा सबने मणिकर्णिका।
मनु बाई ने अपने घर में रंग बिरंगी खुशियां थी पाई
मात-पिता की थी, वह अपनी लाडली।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
जन्म हुआ सन 1828 में पिता मोरपतं तांबे के घर,
माता उनकी बहुत ही प्यारी नाम भागीरथी सप्रे प्यारी,
वाराणसी की गलियों में काशी जैसी धार्मिक नगरी में
मनु को पढ़ना लिखना बहुत भाता था,
काम इसके अतिरिक्त उसे कुछ नहीं आता था।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
मनु जबकि मात्र 4 बरस की तभी माता का संग छूटा,
जिम्मेदारी मनु की पिता तांबे के सर आयी,
छोटी सी आयु में पिता ने युद्ध कला का, कौशल था सिखलाया,
छोटी मनु को पिता ने रानी बनने का हर हुनर बताया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
थी, मनु जब 14 बरस की
तब ही पिता ने, गंगाधर राव संग उनका विवाह रचाया,
पुरानी प्रणाली अनुसार नाम बदलकर लक्ष्मीबाई रख कर आया।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
1851 में रानी ने जन्म एक पुत्र को दिया,
नाम रखा आनंद राव,
राजा बहुत खुश हुए,
पर पुत्र ज्यादा वक्त जीवित न रह सका,
मात्र 4 महीने की अवधि में पुत्र आनंद का निधन हुआ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
शोक में डूब गई महारानी,
इस विपदा से गंगाधर राव जी का स्वास्थ्य डामाडोल हुआ,
पुत्र निधन बर्दाश्त न कर पाए और स्वास्थ्य गंभीर हुआ,
1853 में रानी झांसी ने पुत्र एक गोद लिया,
नाम बहुत प्यारा था, वह दामोदर राव हुआ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
उपस्थिति में अंग्रेजों की पुत्र दामोदर का ग्रहण संस्कार हुआ।
पुत्र दामोदर पाकर राजा भी बहुत प्रसन्न हुआ,
परंतु झांसी पर काले बादल मंडरा गए,
चुपके-चुपके काल गति के कदम,
झांसी तक आ गए।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
इधर महाराजा का निधन हुआ,
तब थी, रानी मात्र 18 बरस की,
अंग्रेजों को जैसे अवसर प्राप्त हुआ,
पर हाथ में कमान संभाली बहादुर, लक्ष्मी बाई ने ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
झांसी पर किसी अंग्रेज को हाथ न रखने दिया,
किया समर्पण सारा जीवन, झांसी की गद्दी के नाम ,
विचार-विमर्श कर हर लगान झांसी के लोगों के लिए कम किया,
थी कमाल, की वह महारानी, नाम था जिसका लक्ष्मीबाई ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
हाथ न झांसी पर किसी भी अंग्रेज को रखने दिया,
यह देख अग्रेजो का मन तनिक भी ना प्रसन्न हुआ,
भेज सूचना लॉर्ड डलहौजी को दामोदर को वारिस बनाने का विचार किया,
पर डलहौजी ने उस विचार को ठुकराया,
निरीक्षण करने के बहाने, डलहौजी झांसी में आया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
ब्रिटिश शासन का झांंसी पर होगा पहरा,
यह घोषणा करने था वह आया,
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी,
रानी झांसी ने यह कहलवाया,
जनता झांसी की रानी के संग हो ली ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्
मी बाई झांसी की रानी ।।
भेजा एक राजदूत को लंदन,
लेने मान्यता वारिस कि,
नहीं प्राप्त हुई मान्यता,
अर्जी को खारिज अंग्रेजों ने किया।
अंग्रेजों ने रानी को सबक सिखाने की मन में ठानी,
पर कसम रानी ने खाई
नहीं दूंगी ! मैं अपनी झांसी
प्रण उस रानी ने किया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
1854 मे अंग्रेजों ने एक पत्र प्रेषित किया,
जिसमें झांसी को अंग्रेजों ने अपने अधीन किया,
एलिस द्वारा आदेश मिलने पर,
झांसी की रानी ने उसका खंडन किया,
और अंग्रेजों से युद्ध करने का उन्होंने एकदम से द्रण प्रण लिया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
गुलाम खान, दोस्त खान, खुदाबख्श, सुंदरी और मुंदरी, काशीबाई,
लाला ,भाऊ, मोतीबाई, रघुनाथ, जवाहर सिंह आदि आदि
थे, सेना के सेनानायक,
कुल 14000 सैनिक थे, भाई ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
1857 में मेरठ में विद्रोह एक भयंकर हुआ,
गौ मांस और सूअर की चर्बीयों की थी, परतें चढ़ी,
इस विद्रोह को दबाना ना अंग्रेजों के लिए आसान हुआ,
फिलहाल झांसी को लक्ष्मीबाई के अधीन रहने दिया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
अक्टूबर सन 1857 को रानी को दतिया और ओरछा के संग
युद्ध करना पड़ा।
देखकर अकेली नार उन्होंने की थी,
झांसी पर चढ़ाई ।।
थी, वीरांगना वह स्वाभिमानी, लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
सन1858 में ह्म रोज के साथ मिलकर,
अंग्रेजों ने झांसी पर फिर धावा बोल दिया,
तात्या टोपे के संग मिलकर,
लेकर सैनिक, 20000,
रानी ने अंग्रेजों के संग की लड़ाई ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
लगभग 2 सप्ताह चली, लड़ाई,
और अंग्रेजों की सेना इस बार कामयाब, अपने इरादों में हो पाई,
की लूटपाट शुरू अंग्रेजों ने ,
लेकर दामोदर को अपने संग रानी भागी और सफल सुरक्षित
जीवन पुत्र दामोदर का किया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
तात्या टोपे के सानिध्य में,
सतत 24 घंटे चलकर,
102 मील का सफर तय किया,
पहुंची कालपी तात्या संग,
कुछ देर वहां विश्राम किया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
फिर तारीख 22 मई 1858 को ह्मरोज, ने,
कालपी पर सेना सहित आक्रमण किया,
रानी ने वीरता पूर्वक ह्मरोज को परास्त किया,
फिर एक बार हमला कर इस बार उसने रानी को परास्त किया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
इस बार रानी ने ग्वालियर किले पर करी चढ़ाई,
सेना की थी मांग बस,
राज्य फिर पेशवा को सौंप दिया ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
17 जून सन 1858 में फिल्म रॉयल आइरिश आया,
इस.बार उसने युद्ध मचाया,
राजरतन घोड़ा नहीं था इस बार,
झांसी की रानी के पास ।।
वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
नया घोड़ा नहर पार ना कर पाया,
संघर्ष किया पर चोट बहुतेरी,
बेहोश होकर गिरी सिंहनी
ले गया, सैनिक गंगाधर मठ के पास ।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।
रानी को गंगाजल पीने को दिया,
रानी ने अंतिम इच्छा बतलाई,
ना कोई अंग्रेज उनकी मृत देह को छूने पाए,
अग्नि का आह्वान कर शरीर अग्नि की जलती लपटों को सौंप दिया।।
लपटों को सौंप दिया।।
थी वीरांगना वह स्वाभिमानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी ।।