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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

जब कभी दिल..

जब कभी दिल..

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जब कभी दिल उदास हुआ,

उसकी यादों के साथ हुआ।

दूरियों की परवाह किये बगैर,

उसके प्यार का एहसास हुआ।

उदासियों के साये में अक्सर,

जिंदगी बर्बाद होती रही,

चाह थी जिसे पाने की,

वो रंग बदलती रही।

उल्फतें जमानत बनती रहीं,

और आरजू मिटती रही।

वो दिन आज भी रुलाता है,

जिसकी तारीख़ में प्यार तय था,

वो सनम आज भी याद आता है,

जिसकी आरजू यार मैं था।

न भूले हरजाई न हम भूले,

दूर दूर रहकर तन्हा ही जले,

प्यार भी जिंदगी बनकर जला,

आंसूओं का समुन्दर भी छला।


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