मेरा ग़म
मेरा ग़म
आखिर सजा के मुस्तहक़ हम ही क्यों हैं,
मोहब्बत में बेवफाई तुमने की ही क्यों है..
प्यार की शमा बुझ गयी,
और गम का धुआं उठता रहा..
नादान ए दिल जफ़ा हो गयी,
और इश्क़ मातम करता रहा,
तुम्हारे इश्क़ की शराब अब नशा नहीं करती,
दिल के मर्तबा जिंदगी हिसाब ए वफ़ा नहीं करती...
इश्क़ का गम मुसीबतों का पहाड़ है,
हँस हँस कर सहना बहुत बड़ी बात है..
मेरे बाद तू कितना बेबस मजबूर होगा,
पास होकर भी मेरा इश्क़ बहुत दूर होगा...