मेरा ग़म
मेरा ग़म
लहज़ा नजाकत उनका फितूर बन गयी,
शिद्दत शुमार जिंदगी मुस्तकिल हो गयी...
लहज़ा नजाकत उनका फितूर बन गयी,
शिद्दत शुमार जिंदगी मुस्तकिल हो गयी...
उठ गई जिंदगी मौत की बाहों से,
ज़िंदा हूँ मैं फिर जिंदगी की राहो में..
यह दर्द ए जिंदगी थक सी गई है,
उल्फतों के साये में थम सी गई है..
सांसे नहीं छोड़ता जिंदगी का फलसफ़ा,
वरना हिस्से में मौत लिख़ चुका है मेरा ख़ुदा...
सच्चे प्यार में जो वफ़ा से खेलता है,
उनके इतिहास का कोई निशां नहीं होता...
ज़िंदा दिल की बस यही पुकार है,
मरते दम तक तुझसे ही प्यार है...
हैरान हूँ आखिर जिंदगी चाहती है क्या,
ज़िदा हूँ मैं आखिर मोहब्बत होती क्या है...