लकीरों का अप्रैल फूल
लकीरों का अप्रैल फूल
वाह क्या खेल है लकीरों का,
मिली रेखाएं उनकी, तो मैं आया,
बंध मुठ्ठी में तकदीर कुछ लकीरे लाया
नसीबवाला हूं ज्योतिष ने हंसते कहा ।
अब लकीरों का खेल शुरु हुआ,
आड़ी टेढ़ी लकीरे खींच कुछ पढ़ा,
घड़ी नौकरी की आई,
डिग्री की लकीरों ने नौकरी दिलाई ।
सुबह शाम कागज़ पर लकीरे खींच
इस बाबू ने जिंदगी सजाई ।
शादी भी लकीरों से बन पाई
कुछ और लकीरे श्रीमती की
मेरी जिंदगी में जुड़ गई ।
घरौंदा बनाने की नौबत आई
लकीरों से नक्शा, नक्शे से
चौरस तिरछी छत की इमारत बनाई ।
अब हाथों की लकीरें देखता हूँ,
कुछ लकीरे कागज़ पर खिंचता हूँ
सोचता हूँ, चलता हूँ, खुश रहता हूँl
आख़िर कुछ आड़ी, कुछ खड़ी,
लकीरों सी बनी अर्थी,
छोड़ आएगी मक़ाम तक ।
पहुंचेगी कुछ मेरी लिखी लकीरें आप तक,
अप्रैल फूल करती रही लकीरें आज तक ।
