घड़ी
घड़ी
कुछ घड़ी दो घड़ी राह तो देखती
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी ।
नजर ना मिलाओ मरजी तेरी,
खड़ी रहती परछाई पर घड़ी दो घड़ी ।
सूरज पीछे खड़ा देख रहा था
कौन ढलता है इस बरअक़्स घड़ी ।
खड़ा था वो, ना परछाई, ना जान थी
ढलते शाम को बेरुखी की दास्ता घड़ी ।
