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Arun Gondhali

Tragedy

4  

Arun Gondhali

Tragedy

घड़ी

घड़ी

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कुछ घड़ी दो घड़ी राह तो देखती

ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी ।


नजर ना मिलाओ मरजी तेरी,

खड़ी रहती परछाई पर घड़ी दो घड़ी ।


सूरज पीछे खड़ा देख रहा था

कौन ढलता है इस बरअक़्स घड़ी ।


खड़ा था वो, ना परछाई, ना जान थी

ढलते शाम को बेरुखी की दास्ता घड़ी ।


 


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