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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

जय हिन्द जय विजया हिन्द

जय हिन्द जय विजया हिन्द

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आज राजनीति का सम्बंध स्वार्थपरता का दौर बना है,

जाति धर्मिता का ठेका पीतल पर सोने का रौब पला है।

दुर्जनों के षड्यंत्र में साहित्य गुमराह हुआ उपहारमय है,

मदिरालय चल रहे विद्यालय बंद कौन हुआ कर्तव्यमय है।

हम इधर से तुम उधर से समर्थकतावाद में चलती भीड़,

कौन समझता आज समाज की वास्तविकता में चीख।

सत्य की शय्या पर लिखते चुभन समाज की विडम्बना,

लोग गले की चीट में समझकर भी करते नहीं मंत्रणा ।

कभी कभी सच कहना उम्र भर की सजा बन जाती है,

असह लगे आघातों को सहने से दुर्बलता बढ़ जाती है।

लेकिन निर्भय होकर लड़ना सत्य को जाग्रत करना है,

असफल भ्रष्ट हुये लोकतंत्र राष्ट्र को सफल करना है।

हजारों वर्ष की गुलामी को याद कर आगे बड़ना है,

जय हिन्द जय विजया हिन्द विश्व विजेता बनना है।


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