रातरानी
रातरानी
गुजरता हुं उस गलीसे देर श्याम जब भी
एक खुश्बू जरूर महसूस करता हुं
चलते कदम बेबस हो रुक जाते है
ठंडका शरारा गुजर जाता है
ज़मीनमें पांव गड़ जाते है
शायद कोई रोक रहा हो
आंखे बंद होती है फिर वही
एक अजीबसी आहट होती है।
अब कुछ महोबतसी हो गई थी
उस गलीसे, उस खुश्बूसे
ज़हनमें बस गई थी महीनोसे।
महीनो बादकी वापसी फिर बैचेन कर गई,
उस गली तक ले गई
वक्त आधी रातका
थम गए पांव फिर वही बात हुई
खुश्बूका वो झोंका आया
आंखे बंद हो गई।सामने वो खूबसूरत खडी थी
परी थी या कोई नूर थी
छलकते आंसू कुछ बयां कर रहे थे
आंसू पोंछने हाथ जो मैंने उठाए
हाथों में कुछ फूल रख दिए
जो ताज़ा थे, उस खुश्बू की याद दिला रहे थे
आंखे खुली तो सामने कोई नहीं था
सिर्फ रातरानी के ताज़ा फूल हथेली में थे।
सूखे टहेलिया,
सूखे पत्ते कुछ मुरझाए फूल
राह के किनारे पड़े रो रहे थे।
