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Yashwant Rathore

Abstract Romance Fantasy

4  

Yashwant Rathore

Abstract Romance Fantasy

मनु, तुम प्रकृति हो

मनु, तुम प्रकृति हो

2 mins
421


मनु, तुम प्रकृति हो

मनु, तुम लहर भी हो

किसी गज़ल की बहर भी हो

तुम नई नवेली सहर भी हो

तुम हो बहती हवा

तुम हो रुत जवां

तुम हो बारिश, तुम गर्मी भी हो

तुम में हैं शोला, तुम नर्मी भी हो

मनु तुम प्रकृति हो..

मनु, तुम प्रकृति हो...

मैंने तितलियों को तुम्हारे पास झूमते, गाते देखा है..

जब तुम शहर की गलियों में मेरे साथ थी

जुगनुओं को रास्ते रोशन करते देखा हैं

मनु, मैंने एक मुकुट तुम्हारे सिर पे देखा हैं

लोगों को तुमसे उम्मीद भरते देखा हैं

मनु, तुम प्रकृति हो..


जब तुम पास बैठती हो, मैं पूरा हो जाता हूं.

मैंने मेरे पास जीवन को ठहरते देखा हैं

मनु, तुम प्रकृति हो

तुम्हारी थाह लेते लेते, मैंने खुद को खोते देखा हैं

बहुत दूर भागते हुए, खुद को तुम्हारा होते देखा हैं

जब तुम चहकती हो, चिड़ियां भी गुनगुनाती हैं

जब तुम हंसती हो, फूलों को मैंने खिलते देखा हैं..

मनु, तुम प्रकृति हो

बहुत फैली हैं शाखाएं तुम्हारी

तुम इधर भी हो, उधर भी हो

मैंने खुद को तुममें सिमटते देखा हैं..

मनु, तुम प्रकृति हो

तुम धूप हो, तुम छांव हो

हरियाली में सिमटा एक गांव हो

तुम रात को सुंदर बनाता चांद हो

कितने ही भावों को आसरा देता बांध हो

तुम प्रेम का गीत, हृदय का नांद हो

मैंने संगीत को मौसम में घुलते देखा है

मनु, तुम प्रकृति हो


मेरे बचपन का प्यार हो

छलकता आंखों का इज़हार हो

मेरे पास की सीट पे बैठी सुंदर नार हो

हां मनु, तुम जीवन की बहार हो

मैंने, ख़ुद को तुम में जीवन को खोजते देखा हैं

मनु, तुम जीवन संगिनी हो

तुम मेरी नंदिनी हो

तुमने जीवन का निर्माण किया

ऐसा कुछ भी नहीं जो मैंने बखान किया

जो तुम हो वो कहता हूं

बस तुम्हारे प्रेम में बहता हूं

मैंने समक्ष तुम्हारे ,खुद को मरते देखा है

मनु, मैंने खुद को भी मनु बनते देखा हैं

मनु ,तुम प्रकृति हो...


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