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निखिल कुमार अंजान

Abstract

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निखिल कुमार अंजान

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जीवन चक्र

जीवन चक्र

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जीवन चक्र निरंतर चलता है

शिशु अवस्था से वृद्धावस्था तक

कितनी सीढ़ियां चढ़ता है

यही आरंभ यही अंत है।


बालपन की कहानी सबकी

आकर के बुढ़ापे पे खत्म है

पग पग पर प्राणी का जीवन

कितने रुप बदलता है।


जो कल तक था बालक

आज उसके साथ स्वंय का बालक 

उसकी उंगली थामे चलता है

किशोरावस्था की मेहनत और इश्क

दोनों का रंग जवानी के साथ चढ़ता है।


कल तक जो माँ बाबा पुकारा करता था

आज वही किरदार से खुद गुजरता है

चढ़ते उतरते जीवन की पगडंडी पर

कितनी कहानियाँ बुनता है। 


अंतिम पड़ाव पे पहुँचने पर फिर से

जीवन जीने को मन करता है

बुढ़ापे तक का सफर करने के बाद भी

कहाँ लोगों का लंबे सफर से मन भरता है।


हर अंजान अपनी पहचान की खातिर

पहले स्टैप से अंतिम स्टैप की ओर अर्थात

आंरभ से अंत का सफर तय करता है.......।


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