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निखिल कुमार अंजान

Classics

4  

निखिल कुमार अंजान

Classics

नब्बे के दशक मे

नब्बे के दशक मे

1 min
353


वो छोटे छोटे घर दिल बड़ा था यार

नब्बे का दशक बड़ा खूबसूरत था यार

वो मोहल्ले के किस्से और आपसी प्यार

कुछ ऐसा था नब्बे का दशक मेरे यार


छोटी सी जगह और सामूहिक परिवार

मस्त मिलजुलकर रह लेते थे यार

न ओटीटी का बवाल न नेट का हाहाकार 

गीतमाला मोगली मालगुडीडेज चित्रहार


रामायण कृष्णा से लेकर फिल्मी इतवार 

दूरदर्शन के भी गजब जलवे थे यार

संसाधन कम थे जिंदगी थी बिंदास

गर्मी के फल आम खरबूजा तरबूज़ 


ककड़ी खीरा पानी की बाल्टी मे डालकर

ठंडा कर परिवार संग खाले थे यार

गर्म रातें छत पर खाटों पर कट जाती

सर्द मौसम गली मे जलाते थे अलाव 

शिकन नही थी माथे पर 


इक दूसरे के सुख दख मे रहते थे संग 

पड़ोसी भी होता था परिवार जैसा यार

कुछ ऐसा था नब्बे का दशक मेरे यार


वो दौर जो बीत गया बचपन मेरा रीत गया

अनगिनत यादें ही हैं बाकि काफी कुछ

कहना सुनना छूट गयाा।


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