खुद के अंदर नही देखा.....
खुद के अंदर नही देखा.....
नभ भी देखा समंदर भी देखा
जब भी देखा हर नजर देखा
बहुत खूबसूरत लग रहा है न सब
बस खुद के अंदर नही देखा
बहुत गुमान था खुद पर
लेकिन आज जैसा मंजर नही देखा
बस आदतन कुछ यूँ मजबूर हैं कि
इंसान इंसान मे कभी अंतर नहीं देखा
पूछते पूछते थक गए हैं खुद से
क्या खोजता है बता दे मन से
दिमाग और दिल साथ नहीं चलता
सवाल क्या है ये जबाव नहीं मिलता
बस कट रहे हैं दिन रात यूं ही
मुझको मेरा हाल नहीं पता चलता
लगता है पशोपेश में है किरदार हमारा
कोई किरदार यूं ही अंजान नहीं बनता।