जीवन रण.....
जीवन रण.....


दुख को देख क्यों
व्यर्थ दुखी है होता
जो चला गया त्याग तुझे
वो भला क्या तेरा होता
मार्ग कठिन है कड़ी तपन है
किंचित भी व्यथित न होना
हृदय मे बंद पड़ी जो साध (अभिलाषा, इच्छा)
लक्ष्य बना निरंतर उस ओर ताक
कल कल कर दुर्गम पथ बहता जल
तू भी बिना रुके बिना डिगे निरंतर चल
सुख मे जब तू सुख का है साथी
तो दुख का भी स्वयं तू ही है भागी
सुख दुख सब तेरे कर्मों का है फल
अभी देर नही है ज्यादा अबेर नही है
समय रहते अब खुद ही तू संभल
काल चक्र घूम रहा न हो शोकाकुल
हे वीर खड़ा हो जीवन रण है
योद्धा की भांति तू चल......