"प्रेम"
"प्रेम"
घर-आँगन में महक हो
प्रेम बेलि तू बोय।
सुरभित पुष्पों से सभी
सम्मोहित सब होय।।
साँझ - सवेरे प्रेम से
बोलो जय श्री राम।
द्वेष-दंभ सब ही मिटे
पायेगा सुखधाम।।
प्रेम सकल संसार की
औषधि है अनमोल।
घृणा दूर कर चित्त से
मीठी बोली बोल।।
बड़े-बुजुर्गों का करो
दिल से तुम सम्मान।
सेवा से मेवा मिले
पाओगे वरदान।।
मानव का कर्तव्य है
जीव-जगत से प्यार।
प्रभु सेवा,उपकार से
चलता है संसार।।
उस ईश्वर की है दया
पाया मानव रूप।
भज ले अब तू प्रेम से
रब के भिन्न स्वरूप।।
