शबरी
शबरी
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जड़-चेतन में प्रभु राम बसे।
सब नैनन में घनश्याम बसे।
करुणाकर भक्तन ताप हरो।
प्रभु दर्शन देकर पाप हरो।।
कर जोड़ खड़ी शबरी पथ में।
शुभ स्वागत को शबरी पथ में।
गलमाल सुहावत है प्रभु पे।
मुसकान खिली इस सूरत पे।।
शबरी सब बेर चबाय रही।
मन को अपने समझाय रही।
प्रभु मूरत चित्त लगाय रही।
मन-मंदिर शेज सजाय रही।।
दुख-दर्द सभी अब दूर करो!
जग से मुझको अब मुक्त करो!
अब धन्य हुई इक भक्तिन मैं।
प्रभु दर्शन पाकर हूँ खुश मैं।।
प्रभु नाम जपो ! सुखधाम वही।
प्रभु मीत बनो ! बलधाम वही।
शरणागत दीन दयालु वही।
नतमस्तक हो ! प्रभु राम वही।।