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Alok Singh

Inspirational

4  

Alok Singh

Inspirational

सफलता

सफलता

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चार शब्दों में सिमटा सदियों का संघर्ष हूं 

मैं तुम्हारी नम आँखों में छुपा हुआ हर्ष हूं 

तुम लड़ते हो खुद से तो मैं जीत जाता हूं 

मैं अक्सर तुम्हें अपने हाथों से सजाता हूं 


ये ठोकरें, जो तुम्हें रोकने की कोशिश तमाम करती हैं 

राह के शूल, तुम्हारे हौसले तोड़ने की हजार भूल करती हैं 

उन्हें क्या पता, खुद मुसीबतों ने तुम्हें तराशा है 

इन बाधाओं को, तुमसे कितनी बड़ी हताशा है 

मैं तुम्हारे अंदर छुपा हुआ जुनून हूं 

मैं तुम्हारे अंदर चमकता हुआ नूर हूं 


गहरे सागर से जब तुम हिम्मत कर मोती चुन कर लाते हो 

मन जिद्दी, तन जिद्दी कर, पर्वत पर चढ़ जाते हों 

अतः मन के द्वंदों पर जब तुम विजय पताका फहराते हो 

खुद के कई हिस्सों को  जब तुम पास पास ले आते हो 

तब मैं, 

मन के अंधियारों का हाथ पकड़ कर उजियारे तक ले जाता हूं 

संघर्षों के कई महाभारत का, इतिहास स्वयं बन जाता हूं 

तुम एक गीत कर्म का बुनते हो, मैं सदियों तक गुनगुनाता हूं 

तुम मरू में भी जब उग आते हो , मैं वर्षा बन आ जाता हूं 

नकारात्मक सोच का मर्दन कर जब आगे तुम बढ़ जाते हो 

आते जाते मन के भावों को, जब शांत स्वयं कर पाते हो 

जुगनू बन जब तुम, चकाचौंध के सूरज से लड़ जाते हो 

खुद को जब तुम कार्बन से हीरे में  परिवर्तित कर पाते हो 

मैं तुमको गीता मान स्वयं के मंदिर में रख लेता हूं 

हारे लोगों के सन्मुख फिर  पाठ तुम्हें कर देता हूं 

मैं तुममें ही छुपी हुयी हर संभावना की शाखा हूं 

बुझे हुए सूरज की खातिर, हर एक सुबह की आशा हूं।।  



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