Alok Singh
Inspirational
गुज़र जाती है रात चाहे काली कितनी हो
एक ये अहसास है जो रात दिन साथ रहता है
रिश्तें
सफलता
उभरते जज्बात
शेर
गणतंत्र _दिवस
मजदूर मजबूर
सॉरी हाथी मेर...
गाँधी
शब्दों की आवा...
अपनी बेटी की दोस्त हूं, अपनी पति की सारी दुनियां हूं ...., हां में ऐसे ही हूं .....। अपनी बेटी की दोस्त हूं, अपनी पति की सारी दुनियां हूं ...., हां में ऐसे ही ...
शब्द कोष को विस्तृत करो मां रचाओ कुछ नयनाभिराम। शब्द कोष को विस्तृत करो मां रचाओ कुछ नयनाभिराम।
एक चाय पीना चाहती हूं। मैं कौन हूं, वो कभी नहीं भूलना चाहती हूं। एक चाय पीना चाहती हूं। मैं कौन हूं, वो कभी नहीं भूलना चाहती हूं।
तू करुणा का सागर है श्याम, तेरी कृपा मुझ पर बरसा देना, तू करुणा का सागर है श्याम, तेरी कृपा मुझ पर बरसा देना,
मै दबी हुई कोई पहचान नही हूँ अपने स्वाभिमान से जीती हूँ। मै दबी हुई कोई पहचान नही हूँ अपने स्वाभिमान से जीती हूँ।
जब धरा पर मेह बरसे, जान लो दिन ग्रीष्म बीते॥ जब धरा पर मेह बरसे, जान लो दिन ग्रीष्म बीते॥
हाँ.. मैंने देखा है खुद को खुद होते मैंने देखा है.. जीवन को जीवन होते ! हाँ.. मैंने देखा है खुद को खुद होते मैंने देखा है.. जीवन को जीवन होते !
ज्ञान की सुधा बुझाते है, महर्षि पराशर ज्ञान की अमूल्य निधि है, महर्षि पराशर। ज्ञान की सुधा बुझाते है, महर्षि पराशर ज्ञान की अमूल्य निधि है, महर्षि पराशर।
समझाने के लिए और नहीं बाकी है। सब एक ही है, सब एक ही है। समझाने के लिए और नहीं बाकी है। सब एक ही है, सब एक ही है।
कुछ हँसे है कुछ हँसाये है कुछ रोये है कुछ रुलाये है। तूने ए जिंदगी कुछ हँसे है कुछ हँसाये है कुछ रोये है कुछ रुलाये है। तूने ए जिंदगी
करेगी दुखों का सर्वनाश मुझे तो पूरा है विश्वास। करेगी दुखों का सर्वनाश मुझे तो पूरा है विश्वास।
कोई कुछ नहीं कहता जब तक बाप का साया रहता। कोई कुछ नहीं कहता जब तक बाप का साया रहता।
जो अरण्य में निर्बाध खिलते हैं सुषमा फैलाकर स्वतः झर जाते हैं। जो अरण्य में निर्बाध खिलते हैं सुषमा फैलाकर स्वतः झर जाते हैं।
तभी तो खुद को भीड़ में भी अकेला समझता था। तभी तो खुद को भीड़ में भी अकेला समझता था।
जामुन का जूस बहुत कंजूस फायदा कम नुक्सान करे खूब। जामुन का जूस बहुत कंजूस फायदा कम नुक्सान करे खूब।
ये एकांत---- मेरे अकेलेपन का---- सच्चा साथी बन जाता है। ये एकांत---- मेरे अकेलेपन का---- सच्चा साथी बन जाता है।
शेष जवानी बीत जाती, गृहस्थी की गाड़ी खींचकर।। शेष जवानी बीत जाती, गृहस्थी की गाड़ी खींचकर।।
लिये हाथों में शस्त्र अपने कर्म क्षेत्र चले हो तुम। लिये हाथों में शस्त्र अपने कर्म क्षेत्र चले हो तुम।
आँखों से कुछ न दिखें,पर चेहरा पढ़ लेती है। पीड़ा में हो कितनी भी,पर पीड़ा समझ लेती है। आँखों से कुछ न दिखें,पर चेहरा पढ़ लेती है। पीड़ा में हो कितनी भी,पर पीड़ा समझ...
वास्तव में यह हम सब की जिम्मेदारी आओ मिलकर निभाए बारी बारी। वास्तव में यह हम सब की जिम्मेदारी आओ मिलकर निभाए बारी बारी।