गाँधी
गाँधी
राजनीति के ठेकों पर
याद तेरी भी आती है
वोटो के चककर में अब भी
बोली लगायी जाती है
नोटों पर फोटो हो किसकी
बड़ा झमेला हो जाता
नाम पर तेरे अब भी गाँधी,
हिन्दू, मुस्लिम हो जाता
बकरी भी अल्लाह नाम जपे पर
मुंडी उसकी कट जाती है
गाय पूजनीय माँ के जैसी
फिर भी हत्या हो जाती है
रामराज्य अब भी सपना है
नाम तेरा अब भी जपना है
कितने वर्ष हैं बीत गए
पर नाम पर तेरे राजनीति की
रोटी को अब भी सिकना है
तू रोता था अगर किसी की
आंख में पानी आजाये
बन कर तू खुद में मजबूती,
गरीबों की मजबूती हो जाये
न्याय की तू पूजा करता था,
लड़ जाता था अन्यायी से
लिखता था विद्रोह समय का,
अपने खून की स्याही से
नहीं रही अब बात वो बापू
नहीं किसी की कोई सौगात है बापू
राजघाट पर लेटा लेटा
देख ले अब इंसान तू बापू
कितने आते सच में बापू
यहाँ नमन करने को
कितने वादे करते पूरे
सपने तेरे पूरे करने को
आना जाना
पर मिल न पाना
हर दिन का है खेल निराला
देख ले अब लोगों को गांधी
मिलते हैं कितने प्यार से अब सब
हाथ मिलाकर आगे बढकर
पीठ पर करते वार हैं अब सब
तू भी बदला वसूल भी बदले
बदली तेरी सीख यहाँ तो
अब तो सबके वजूद भी बदले
अब तो तेरी लाठी में भी
कोई दम नहीं दिखता है
बंदर तेरे उत्पाती हैं
पर मूल्य नहीं कोई रखता है
चुप रह कर बस सुनता रहता
आंख बंद कर देखता रहता
तभी जिस्म अब अपने अपने
रिश्तों को है सिलता रहता
रामराज्य में राम नहीं है
कलयुग में अब श्याम नहीं है
किसका कोई दामन थामे
कौन है जिसमें स्वार्थ नहीं है।