शब्दों की आवाज
शब्दों की आवाज
सत्य की जीत पर असत्य नाचने लगा
छोड़ लाज जग की कर्तव्य निभाने लगा
सो गए जुगनू दिन के उजाले में
आलोक अब सूरज से आंख मिलाने लगा
उखड़ने लगी सिलन अब रिश्तो की कमीज से
है परख जिन्हें वह रफू करवाने लगा
है जमाना ताक में हाथ में पत्थर लिए
मासूम सा पक्षी अपने घोसले में पंख फड़फड़ाने लगा
टूटकर जो जुड़ गया है भीड़ से है वह अलग
बारूद की धरती पर वह प्यार फैलाने लगा।