एक आदिवासी लड़की
एक आदिवासी लड़की
बस्ती, जंगल, नदी, उड़ते पंछी
बहुत याद करती है मुनिया
पिछली बार जब लौटी थी
अपनी बस्ती
उसकी माँ ने कहा था
एक-दो साल में ब्याह दी जायेगी
धीरे-धीरे मुनिया समझने लगी है
नारी सशक्तीकरण, शहरीकरण और स्पर्धा
मुनिया अपने थोड़े से बदले चेहरे को
हर दिन आईने में निहारती है
उसका काला रंग
अब थोड़ा फीका हो गया है
लाल, पीले रंग फबकर
अपनी चमक छोड़ने लगे हैं
रूखे, बेज़ान बाल
मुलायम और चमकदार हो गये हैं
उसकी फटी एड़ी
चप्पल में सुन्दर दिखने लगी है
तन पर अच्छे, आधुनिक कपड़े हैं
बालकनी
में आती बारिश के
हल्के छींटों में कैसे भीगना है
सीख लिया है उसने
अपने मन के तालाब में खिले कमल को
कैसे संभालना है
जानती है अब मुनिया
अपनी मालकिन की दुलारी
अक्सर यही सोचती है
कि एक दिन राजकुमार आयेगा
गोरा, सुदंर और शहरी
मालकिन ढूँढ लायेगी
जैसे अपनी बेटी के लिये लायी थी
लौटना फिर उसी मिट्टी पर
भय और उदासी देता है
अपने सपने में उसी बस्ती के
अंतिम छोर पर
एक शहर बसा चुकी है मुनिया
मुनिया जब हँसती है
उसकी सारी सादगी
झलकती है, सफ़ेद दाँतों से