Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

अख़बार

अख़बार

1 min
668


अख़बार वाला रोज़ आता है

बड़ी स्फूर्ति के साथ, सुबह-सुबह

रख जाता है ख़बर 

हमारे दरवाज़े पर


हम हर सुबह, अपनी आँखें मिचते हुये 

जैसे उनमें कल की ख़बरों को 

मिटाते हुये, उठा लेते हैं

अपने हाथों से अख़बार को

पन्नें पलटते हुये, बुदबुदाते, पढ़ते हैं

साथ-साथ, चाय की चुस्की से

तरोताज़ा करते हैं खुद को


हर पन्ने की ख़बर, विज्ञापन 

और पढ जाते हैं बहुत कुछ 

अंतिम पृष्ठ तक हर रोज़

हम इसी तरह अख़बार पढ़ते हैं


फिर एक दिन आता है 

रद्दी खरीदने वाला

ले जाता है अख़बार के ढ़ेर को

हमारी सारी इकट्ठी ख़बरों को

बदले में दे जाता है हमें

 अख़बार के पैसे


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract