मैं सागर जितना गहरा प्रेम, निश्चित तुमसे कर पाऊंगा
मैं सागर जितना गहरा प्रेम, निश्चित तुमसे कर पाऊंगा
मैं सागर जितना गहरा प्रेम,
निश्चित तुमसे कर पाऊंगा
तुम तुलसी बनकर आंगन में
बोलो मेरे रह पाओगी ना ।
इस जीवन के चौमुख पथ पर
मैं विचलित विवश हो जाऊं तो
तुम धारा बनकर गंगा की
संग मेरे बह पाओगी ना ।
है राम के जैसा जीवन मेरा
हिस्से में वनवास का होना तय है
तुम सीता बनकर साथ मेरे
वन में 14 बरस बिताओगी ना।
तुम इन वादों पर अडिग रहो
मैं निश्चित समय झुका पाऊंगा
तुम जब जब सोने की मृग मांगोगी
मैं पूरी लंका ला पाऊंगा।
