रूख मौसमों का देखो इशारे समझ जाओ
रूख मौसमों का देखो इशारे समझ जाओ
केवल सोचोगे
सोचते रहोगे तो,
धरा पर धरे के धरे रह जाओगे
उठो रेंगो दौड़ने की आदत डालो
वरना जहां पर खड़े हो वहीं
खड़े के खड़े रह जाओगे ।
बारिशें भीगो रही है
तुम मस्त होकर जिस
कश्ती के सहारे बैठो हो,
आंधियों के उठने का तुम्हें
आहट ही नहीं है,
छोड़ कर समंदर में पतवारें
बैठें हो ।
रूख मौसमों का देखो
इशारे समझ जाओ,
पतवारें पकड़ो और
किनारे निकल जाओ,
उठें लहरें
मंज़र भयावह हो जाये
पसीने से तरबतर हो
ललाट पर घबराहट छा जाये
तुम उसी मझधार में
पड़े के पड़े रह जाओगे
लहरें उठेंगी कश्ती डुबो देगी
फिर उसी समंदर में
गढ़े के गढे रह जाओगे।
--पंकज साहनी
