यहीं उम्र है मरहम का,उम्र यही है घाव का । पंकज
यहीं उम्र है मरहम का,उम्र यही है घाव का । पंकज
घर के जिम्मेदार बेटे
जब अय्याशियां करेंगे
घर के हालात कैसे सुधरेगा,
गरीबी से कैसे लड़ेंगे ?
यहीं उम्र है भीगने का
पसीने से नहाने का,
धूप में तपने का, और
भूख को बढ़ाने का ।
यहीं उम्र है,
रण में उतरने का,
संघर्ष को चुनने का, और
लांछनों से डरने का ।
यही उम्र है सरलता का
उम्र यही है बदलाव का,
यहीं उम्र है मरहम का, और
उम्र यही है घाव का ।
और इसी उम्र में जो,
खनकती चूड़ियों से,
बच गए है ।
पन्ना पलटकर देख लो ,
इतिहास वहीं रच गये है ।
