तन्हा रातों में बिखरते हैं कुछ मोती
तन्हा रातों में बिखरते हैं कुछ मोती
मैं अश्कों की अपनी रवानी लिख रहा हूँ
गजल में इक कहानी लिख रहा हूँ !
तन्हा रातों में बिखरते हैं कुछ मोती
तेरे लिये मैं पानी लिख रहा हूं !
कागज कलम आज फिर उठा लिया मैंने
नये ज़ख्मों का दर्द पुरानी लिख रहा हूं !
कुछ किताबों को पढा था चंद वर्ष पहले
जो मिली मोहब्बत जुबानी लिख रहा हूँ !

