नीला अंबर...। नीला अंबर...।
लहरों के बीच अपनी कश्ती में किनारे से दूर बैठा हूँ...। लहरों के बीच अपनी कश्ती में किनारे से दूर बैठा हूँ...।
और कुछ देने को आतुर हो अपने अन्दर भरे पड़े अथाह गहन धन कोष से शंख सिपियां बिखेर जाती हैं। और कुछ देने को आतुर हो अपने अन्दर भरे पड़े अथाह गहन धन कोष से शंख सिपियां बिख...
दो किनारे ! दो किनारे !
लोगों को कुछ पत्थर, लगते थे थोड़े प्यारे,प्यार अपना वो जताकर, फिर आ गए किनारे.... लोगों को कुछ पत्थर, लगते थे थोड़े प्यारे,प्यार अपना वो जताकर, फिर आ गए किनारे......
फिर भी आती है मॉरिशस की याद, समँदर का सैलाब कभी कभी। फिर भी आती है मॉरिशस की याद, समँदर का सैलाब कभी कभी।