नदी - सी थी तुम...! नदी - सी थी तुम...!
सबरनाखा को समर्पित...। सबरनाखा को समर्पित...।
पर्यावरण मेरा अस्तित्व ! पर्यावरण मेरा अस्तित्व !
हिमगिरि से निकल कर कल-कल, निरंतर प्रवाहमान करती छल- छल, है मेरी जलधारा निर्मल, पर्वत श्रृंखला मात... हिमगिरि से निकल कर कल-कल, निरंतर प्रवाहमान करती छल- छल, है मेरी जलधारा निर्मल,...
ये शक्ति है मुझमें किंतु सृष्टि चलती रहे और सभ्यताएँ फैलती रहें इसलिए मैं स्वयं ही डूबती हूँ और ... ये शक्ति है मुझमें किंतु सृष्टि चलती रहे और सभ्यताएँ फैलती रहें इसलिए मैं स्व...
है फैलकर देश के कोने - कोने तक भारत माँ की शोभा है बढ़ाती नदियां...! है फैलकर देश के कोने - कोने तक भारत माँ की शोभा है बढ़ाती नदियां...!