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Chandramohan Kisku

Drama

5.0  

Chandramohan Kisku

Drama

सबरनाखा का स्थायित्व

सबरनाखा का स्थायित्व

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वह कल - कल बह रही

सबरनाखा नदी

जिसकी गोद में खेला था

बचपन में


देख रहा हूँ अब

कल - कारखानों की प्यास

बुझाने में सूख गई है

उसकी देह से लिपटी

दूर तक फैली

लाल और सफ़ेद साड़ी

बालू की

धीरे - धीरे उसकी देह से

छीनी जा रही है

बहुत ही कामुकता के साथ


फिर भी मनुष्यों को चैन नहीं

बड़े - बड़े डेम बनाकर

सबरनाखा माँ के

हाथ - पैर को बाँध दिया है


देह का लाल गोश्त

झिलमिल चमकनेवाली

नदी का सोना बालू

कुदाल से, मशीन से खोद रहे हैं


नदी पर अनेक अत्याचार

चलाने के बाद

तैयार किया है पूल

और सभ्य मानव

उसपर चढ़कर

आनंद से हँस रहे हैं

प्रतिदिन सुबह - शाम...!


[ सबरनाखा - झारखण्ड की प्रमुख नदी जिसके बालू में सोना मिलता है। ]


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