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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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तरस्ती निगाहों को तरसा रहे हो

हमें छोड़कर के कहा जा रहे हो


कहा मैं कहा दिल कहा यार मेरा

यहाँ है मुहब्बत कहा जा रहे हो


किसी का हुआ ही नही ए जमाना

वहाँ है पराये कहा जा रहे हो


बहुत है परेशा अभी जिंदगी भी

मर मर के तुम क्यूँ जिये जा रहे हो


हुआ कुछ नहीं दिल मुतमईन ऐसा

गमों पर धरम तुम ग़ज़ल गा रहे हो।


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