अजनबी
अजनबी
हल्की सी रोशनी थी लालटेन की,
उस झोपड़ी में,
करहा रही थी बूढ़ी औरत,
व्याकुल था बालक,
कैसे रोके जाने से साँसों को माँ की,
कोई साधन न था,
देख कष्ट बालक का,
हो दुखी आसमान भी,
झर-झर गिराने लगा आँसू,
बना बादलों को माध्यम।
हुई खट-खट द्वार पर,
कुछ डरा कुछ घबराया बालक,
कहीं ईश्वर तो नहीं,
आ गये सुन प्रार्थना?
भागा यह सोच खोलने द्वार,
खड़ा था एक अजनबी,
शरण लेने की प्रतीक्षा में,
आया अन्दर लिये कुछ सामान अपना,
देख कष्ट में माँ को बालक की,
गया सीधा उसके पास।
किया परीक्षण,
दी औषधि उसी क्षण,
करता रहा सेवा,
अचम्भित सा बालक,
खड़ा देखता रह गया,
यह अजनबी डाक्टर है,
या कहीं ईश्वर तो नहीं?
अजनबी ने देखे प्रश्न कई,
चेहरे पर बालक के,
और उसकी माँ के।
है वह एक डाक्टर,
जा रहा था करने इलाज एक रोगी का,
भटक गया था रास्ता,
वर्षा, आँधी और तूफ़ान में,
देख टिमटिमाती बत्ती,
आ गया इस घर में,
बचाने जीवन अपना,
हाथ जोड़ खड़ा हो गया बालक,
“है धन्यवाद अनेक आपका,
परन्तु नहीं है पैसे चुकाने को फ़ीस”,
बोला अजनबी,
“ फ़ीस, कैसी फ़ीस?
दी शरण मुझे तुमने,
बचाया जीवन मेरा तुमने,
हैं आज से बहन मेरी,
माँ तुम्हारी,
रहेगें सब हम साथ-साथ,
शहर वाले घर में,
झर-झर बहने अश्रु ख़ुशी के,
नयनों से सभी के।
