वाह..रे नसीबा !
वाह..रे नसीबा !
वाह..रे नसीबा, तूने खेल ऐसा खेला
भीड़ में दुनिया की मैं पड़ गया अकेला।।
घाव किया है बहुत गहरा
जीवन था मेरा सुनहरा,
एक ही पल में तूने, सब कुछ
कैसे बदल डाला
वाह रे नसीबा! तूने खेल ऐसा खेला।।
पलकों पे बिठाते थे, जो मुझे हमेशा
हुई शायद मुझसे, उनकी बहुत ही निराशा
क्रूर मर्दन ने तेरे...मुझे कमजोर बना डाला
वाह रे नसीबा तूने खेल ऐसा खेला।।
क्या था दोष मेरा, जो सजा तूने दे दी
एक ही पल में तूने जान मेरी ले ली
क्या भरोसा करूं अब तेरा..
तूने मेरे विश्वास का, दम है निकाला
वाह रे नसीबा तूने खेल ऐसा खेला
भीड़ में दुनिया की मैं पड़ गया अकेला।।