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Samadhan Navale

Tragedy

4  

Samadhan Navale

Tragedy

अंत्ययात्रा

अंत्ययात्रा

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निकले है वो देखो,होके सवार अर्थीपर

कीस्मत के मारो को,मिला आसरा खुदा के घर

जिंदगी भर जिसने नही की कोई तमन्ना

समझती थी जिन्हे वह,सारा जहाँ अपना

तरस गयी आखिरमे पाणी की बुंद को वह


प्यासी ही चली गयी,न लौटने वाली राह,

क्या हो रहा है भगवान,तेरी इस जमीन पर

कीस्मत की मारी को,मिला आसरा खुदा के घर।

बहु-बेटे,नाती-पोते,रोये है खुशी से


'बुढ़िया गई बला टली' निकले है मन से,

तंगदील इन्सानोने अब तो हद ही कर दी

कंधा देने जाने मे भी,उसने आनाकानी कर दी,

'खुद'के वक्त मे जाने वह,जाएगा क्या खुद चितापर ?


किस्मत की मारी को मिला आसरा खुदा के घर

कभी आये मन मे मेरे,खयाल यही बेतुका

क्या देखते होंगे 'जाने' वाले,बर्ताव इस दुनिया का ?

क्या सोचते होंगे बारे मे हमारे ?

स्वार्थ के 'कीडे' लगते होंगे, जीते इंसान सारे

जवाब आसां है..

तुम भी खाओगे, ठोकरे हर दर-दर

कीस्मत के मारो को मिला आसरा खुदा के घर।

तुम भी खाओगे, ठोकरे हर दर-दर

किस्मत के मारो को मिला आसरा खुदा के घर।


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