परिवर्तन
परिवर्तन
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रौशनी में कोई फ़र्क नहीं
दिन पहले भी उगता था,
सूर्य अब भी निकलता है।
चंद्रमा पहले ही की तरह
पूर्णिमा व अमावस के बीच
अपना आकार बदलता है।
वही तारे वही आकाश
रात और दिन के बीच वही
एक-दूसरे को छूने की होड़।
उस विस्तृत आस्मान तले,
पहले सा ही सब कुछ
वही ज़िंदगी की भाग-दौड़।
सब कुछ वैसा ही तो है-
मेरे अपने पहले की तरह
आज भी हैं मेरे पास
पता नहीं क्यों अब मगर,
होने लगा है अचानक
तन्हाई का सा एहसास !