बदलाव
बदलाव


सब्र रखो अगर दिल में इनक़लाब मचलता है,
ज़माना भी आख़िर एक ज़माने में बदलता है!
तबदीलियाँ कहीं किताबों में ही सिमट गयी हैं,
नौजवान ख़ून भी अब मुश्किल से उबलता है!
आबो-हवा इस दौर की कुछ ऐसी हो चली है,
हर शख़्स अब एक-दूसरे से बच के चलता है!
शाम होने से पहले रात हो जाती है इन दिनों,
ख़बर ही नहीं होती सूरज किस वक़्त ढलता है!
अब तो अख़बार पर भी कोई एतबार ना रहा,
सुना है आज-कल बिकने के बाद निकलता है!
ज़माना ख़राब है, कुछ एहतियात बरता करो,
हर एक आस्तीन में कोई साँप ज़रूर पलता है!