हमने मना रखा है
हमने मना रखा है
दिल के बहलाने का एक ज़रिया बना रखा है
इस शेर-ओ-शायरी में और तो क्या रखा है ?!
आ जाओ तो अच्छा, ना आओ तो ग़म नहीं…
उम्मीद ने वैसे भी अपना दामन छुड़ा रखा है !
ग़ैरों के सितम की शिकायत करें भी तो कैसे?
यहाँ अपनों ने ही पीठ से खंजर लगा रखा है !
ख़ुशियों को ख़ुदा जाने नाराज़गी क्या है हमसे
घर का दरवाज़ा तो हमेशा से खुला रखा है !
रूठती है यह ज़िन्दगी तो अब रूठा करे बेशक
कम-अज़-कम मौत को हमने मना रखा है !