मोहब्बत हो गयी है !
मोहब्बत हो गयी है !
बरसों किया है इंतजार...
तुम्हारा कुछ इसी तरह से,
लहरों के उतार-चढ़ाव...
और डूबते हुए सूरज को,
देखते इसी समुद्र-तट पर !
शिकायत वादा-ख़िलाफ़ी की
हो भी तो किस तरह ?
आने का कोई अहद...
निभाने के लिए कोई वादा
तुमने किया ही कब था !
पर वो नाहक सी कोफ़्त,
वो बिना वजह की उलझन
नहीं हुआ करती मुझे अब...
इन लहरों के 'उतार' से...
इस 'डूबते' हुए सूरज से...
मोहब्बत जो हो गयी है !!