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Akshat Shahi

Abstract Romance

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Akshat Shahi

Abstract Romance

भूल गया

भूल गया

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खता मानते ही उसने सजा मुकरकर करी 

कब तक सजा मिले मुझे वो बताना भूल गया।


डूबने लगा तो गहराई का पयमाना छूट गया 

मेरा माज़ी साहिल पर नसीहत देना भूल गया।


खोजे थे जो रास्ते उनका पता भी भूल गया 

वो दहलीज़ पर बैठा हाथों की गर्मी भूल गया।


सुना है काँटों में खिलने की कला सीखने लगा

दामन के फूल बाँटता रहा वो महकना भूल गया। 


कत्ल का इल्जाम मेरे मुनसिफ पर मुश्तहिर था 

वो चुप रहा काफिर मैं फैसले की घड़ी भूल गया


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