STORYMIRROR

Akshat Shahi

Abstract

3  

Akshat Shahi

Abstract

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
168

गुल भी है गुलशन की आबोहवा है  

यह पर्दा रुख से हटा कर तो देखो 


यह दीवारों इतनी जिद्दी नहीं हैं 

एक खिड़की ज़रा बना कर तो देखो 


शामों में अब भी उजाला है बाकी 

जाम-ऐ-ग़म गिरा कर तो देखो 


मकाँ में रंगों की महफ़िल मिलेगी 

माज़ी जाले हटा कर तो देखो 


सुना है एक आशिक़ फौत-ऐ-ज़दा है 

मेहबूब ज़रा बुला कर तो देखो। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract