चांद संग दावत
चांद संग दावत
कितने सवाल लाज़िम हैं जो पूछे जाए
पर हर दफा जान दाव पर कैसे लगाए।
दामन के हर टुकडे से कैसे पूछा जाए
मिजाज़ कैसा है शाम कैसे बिताई जाये।
काम चल रहा है गुजारा भी हो जाएगा
हाकिम से कह दो बस कहर ना बरसाए।
मेरा मुस्कुराना जल्द कानून हो जाएगा
सख्त लहज़े से बस ये दिल ना टूट जाए।
शाम हो चुकी फिर हिमाकत की जाए
सहर होने तक चाँद संग दावत की जाए।
