STORYMIRROR

Akshat Shahi

Abstract

3  

Akshat Shahi

Abstract

चांद संग दावत

चांद संग दावत

1 min
203

कितने सवाल लाज़िम हैं जो पूछे जाए 

पर हर दफा जान दाव पर कैसे लगाए।


दामन के हर टुकडे से कैसे पूछा जाए 

मिजाज़ कैसा है शाम कैसे बिताई जाये।


काम चल रहा है गुजारा भी हो जाएगा 

हाकिम से कह दो बस कहर ना बरसाए।


मेरा मुस्कुराना जल्द कानून हो जाएगा

सख्त लहज़े से बस ये दिल ना टूट जाए। 


शाम हो चुकी फिर हिमाकत की जाए 

सहर होने तक चाँद संग दावत की जाए। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract